Tuesday, December 25, 2012

एक थी दादी

संजय व्यास जी की एक रचना (मैंने इसे कहानी कह दिया है लेकिन है रचना )सुनिये -
"चारपाई पर बुढ़िया " 




इसे पढ़ सकते हैं संजय व्यास नामक ब्लॉग पर

लेकिन इसके साथ ये भी बताना चाहती हूँ कि जब मैंने ये रचना पढ़ी तो मन हो गया रिकार्ड करने का तो हमेशा की तरह रिकार्डिंग करके अनुमति के लिये भेज दिया संजय जी का मेल आई डी खोज कर और उनका जबाब मिला ये ...

शुक्रिया अर्चना जी.बहुत आभार आपका.आपने मेरी इस छोटी सी रचना को भरपूर मान दिया है.कहानी तो इसे क्या कहूं,बस रचना ही मान लें.आप इसे लिंक कर लें.मुझे ख़ुशी होगी.मैं स्वयं रेडियो में पिछले १८ बरस से नौकरी कर रहा हूँ,इसलिए कह सकता हूँ कि आपने इसे अपनी आवाज़ देकर इस रचना को गरिमा प्रदान कर दी है.
 अब मैंने ये तो सोचा ही नहीं था कि ये रेडियो में काम करते होंगें ... :-)
तो अपनी सारी गलतियों के लिये माफ़ी माँग लेती हूँ ...और इस कहानी की अनुमति देने के लिए भार भी करती हूँ संजय व्यास जी का ...

5 comments:

Ramakant Singh said...

आवाज को चेक करें ....

ashish said...

संवेदन शील कहानी और उत्तम प्रसारण . बहुत सुन्दर

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सुंदर प्रसारण। दुबारा सुना..मुझे तो आवाज में कोई गलती समझ में नहीं आई। संजय जी से परिचित कराने के लिए आभार। कहानी के संबंध में वहाँ यह लिख आया हूँ...

जिम्मेदारियों का भी अपना आयतन होता है।

..सर्वथा अनूठे दर्शन से रूबरू कराते इस सूत्र वाक्य के साथ यह कहानी हृदय को छू गई। इस कहानी का शीर्षक 'बिखरता आयतन' अधिक प्रभावशाली होता।

sanjay vyas said...

शुक्रिया अर्चना जी.आभार.

प्रवीण पाण्डेय said...

रोचक ठंग से व्यक्त कहानी..