Wednesday, March 19, 2014

छटपटाहट.......

हलचल

गिरते हुए पत्तों की सरसराहट से
होती है दिल में हलचल
रूकते हुए क़दमों की आहट से
होती है दिल में हलचल
यूं ही पतझड़ में गिरे पत्तों पर
कोई चला नहीं करता
कदम उठ पड़ते हैं किसी की याद में जब
होती है दिल में हलचल ..........

समंदर

तुमने देखा नहीं मेरी आँखों का समंदर
किनारे पर आकर जहाँ रूक जाती है लहर
गहराई भी इतनी कि डूब सकता है कोई,
बिता सकता है शाम, किनारे पर ठहर.....

पतझड़

गिरते हुए पत्ते डाली से कहे
भले ही दर्द हमारा तू अकेले ही सहे
हम तो साथी इन हवाओं के
रूक नही पायेंगे तेरे रोकने से
उम्र भर ,सदा इसके संग ही बहे
आयेंगी नन्हीं कोपलें सावन के साथ फिर
मगर यहाँ कौन है जो उम्र भर संग रहे ............

13 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर कविता, गहरे भाव।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

आज तो कपिल शर्मा की तरह पूछने को दिल कर रहा है कि तुम शुरू से इतना अच्छी कविता लिखती थी या निराला-बच्चन का कोई कोर्स किया है इधर आकर??
मज़ाक दीगर... बहुत अच्छी लगीं!!

Unknown said...

test comment

Anupama Tripathi said...

टीस सी उठती है
पत्तों की सरसराहट से ,
लो उम्र भर
साथ रहने का वादा लिए
दर्द बनकर मेरे हमराज़
मैं आज तेरे घर आया हूँ ....!!

आपकी भाव प्रबल पंक्तियाँ लिखवा गईं मुझसे ...!!

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर !

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

अर्चना जी , बहुत ही खूबसूरत और भावभरी कविता । कहीं से भी सायास लिखी नही लगती । भावों की गहराई से जब निकलती है तो कविता ऐसी ही कुछ होती है ।

Unknown said...

पहली बार आपके ब्लॉग का पता पाया …भाव-पूर्ण अभिव्यक्ति देख मन प्रसन्न हो उठा है

Satish Saxena said...

गहराई भी इतनी कि डूब सकता है कोई,
बिता सकता है शाम, किनारे पर ठहर.....

यह उत्साह उमंगें बनी रही ....मंगलकामनाएं !

Onkar said...

सुन्दर रचना

Ramakant Singh said...

हलचल, समंदरऔर पतझड़ मन को कुरेदती किन्तु जीवन से जुडी बेहतरीन भावमय रचना

Unknown said...

सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति

एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: विरह की आग ऐसी है

संजय भास्‍कर said...

टीस सी उठती है
पत्तों की सरसराहट से ,
...........भावभरी कविता

शारदा अरोरा said...

bahut achchhi abhivyakti...