Saturday, May 30, 2015

अमृत घट और ईश्वर की बंदर बाँट

हर कोई यहाँ बस ...

तहस -नहस 

करना चाहता है 
,हर कोई हर किसी से 

हर कहीं बस 
,बहस करना चाहता है,
 कहीं कोई किसी से
 बिछड़ा तो 

बरबाद करना या
 बरबाद होना जानता है,

हे ईश्वर !

क्या ये तेरे ही बनाए इन्सान हैं,

जिन्होंने  सति से 

तेरा विछोह

और दक्ष से 

तेरा विद्रोह और 

नग्न द्रौपदी को 

ही याद रखा...

कहाँ गया 

इनका धैर्य?

.....राम की

चौदह साला तपस्या 

क्यूँ याद नहीं इनको?

या फिर देवकी के धैर्य से 

क्यूँ नहीं कुछ सीखा?

...या 

फिर रचने वाला है तू

कोई नई लीला ....

लेने वाला है कोई अवतार 

करने को संहार
 अपनी ही दुष्ट संतानों का
 और देने वाला है फिर कोई सबक

लिखवाने वाला है
 फिर कोई 

कलयुग पुराण .....

अगर हाँ 

तो देर क्यूँ
 क्या अब
 दामिनी कि पुकार सुनाई नहीं दे रही
 या कि बिना सोचे दे चुका है 

इंसाफ की देवी को अमृत घट ...


-अर्चना (26/05/2015)

6 comments:

Mithilesh dubey said...

झकझोर दिया आपने। काश कि अब भी दामिनी की पुकार उस तक पहुँच जाये ।

http://chlachitra.blogspot.in
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Onkar said...

सटीक सवाल

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर अभिव्यक्ति ।

dj said...

सच है
अगर हाँ
तो देर क्यूँ
वाकई अब इंतज़ार और नहीं होता।
आत्मा को झखझोरती भावनात्मक अभिव्यक्ति।

संजय भास्‍कर said...

सुंदर अभिव्यक्ति ।

संजय भास्‍कर said...

सुंदर अभिव्यक्ति ।