Friday, May 21, 2010

" दाने-दाने पर ............................................................

इन दिनों अपनी बहन के नए मकान के वास्तुपूजन के लिए नासिक आई हूँ.........अभी फ़्लेट में बहन के परिवार के अलावा कोई रहने नहीं आया है ..........." कामवाली बाई " जो उसके पुराने मकान में काम करती थी, नए मकान में भी काम करना चाहती थी, मगर घर ज्यादा दूर होने से आ नहीं पाई जिसका उसको बहुत अफ़सोस हुआ.............इधर नए फ़्लेट के चौकीदार की पत्नी को पूछा तो वो ये काम( बर्तन-झाडू-पोछा )न करने के बावजूद भी, काम करने को राजी हो गई..........परंतु जिन दिनों खास जरूरत थी उन दिनों उसके घर में भी पूजा होने से आने में असमर्थता जताई......फ़िर अपनी ही एक सहेली को एक दिन लेकर आई और कहा ----"ये काम कर देगी........वैसे तो ये भी ऐसा काम नहीं करती ..........इसने भी रो-हाउस में अपना घर लिया था, पर अचानक पति का देहांत हो गया, एक बेटी और एक बेटा है १५ साल का, अब वो काम पर जाता है ..........ये कहीं काम नहीं करती क्योंकि लोग ठीक से बात नहीं करते ............मेरे कहने पर आपके यहाँ काम कर देगी जब तक मैं नहीं आ पाती.........
और वो दूसरे दिन से काम पर आने लगी, बिना कुछ बोले चुपचाप अपना काम करती और चली जाती............जैसे-जैसे पूजा का दिन नजदीक आ रहा था, मेहमान बढने लगे थे और काम भी................पूजा वाले दिन भी वो आई ...........जब कुछ काम नहीं बचा तो उसे थोडी देर बैठने के लिए कहा -------वो संकोच करते हुए एक कोने में जगह ढूँढ कर थोडी देर रूकी मगर आने-जाने वाले अनजान लोगों के बीच अपने आपको असहज महसूस करती रही ....और अचानक किसी को कहे बिना चली गई ...............वास्तव में उसे शाम के भोजन का अपने बच्चों के साथ आमंत्रण देने के लिए रोका गया था ताकि बहन उसे खुद आमंत्रित कर सके..............पर वो जा चुकी थी ......किसी को उसका घर भी नहीं पता था................हम सबकी नजरें शाम को पूरे समय तक उसे खोजती रही, पर वो नहीं आई............बहुत अफ़सोस हुआ......खाना गले से उतर नहीं पा रहा था ..................और रात को सोते समय एक आवाज कानो में गूँज रही थी --------" दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा है "..................करवट बदल-बदल कर रात गुजारी .................सुबह जब सब चाय की चुस्कीयां ले रहे थे .......वह फ़िर अपना काम करने आ चुकी थी ......जब उससे कहा आप चली क्यों गई???????? एक मुस्कान बिखेर दी ................और चुपचाप नीचे देखकर अपना काम करती रही..............................

6 comments:

दिलीप said...

waah kitne nishchal bhaav sajaaye hain....kuch maarmik hone ke baad bhi ye vrittant kuch sukhad ehsaas de gaya...

दीपक 'मशाल' said...

दुनिया में कितना ग़म है.. मेरा ग़म कितना कम है... मुझसे नहीं बर्दाश्त होता ऐसा लेखन..

दीपक 'मशाल' said...

क्यों इतनी तकलीफ है हर जगह दुनिया में????

राज भाटिय़ा said...

हमे हमेशा उस ऊपर वाले से डर कर रहना चाहिये, पता नही कब किस पर आफ़त आ जाये,दिल उदास हो गया

Udan Tashtari said...

अब क्या कहें..आपका मन था लेकिन फिर वाकई..दाने दाने पर...दुखिया ये संसार...

Smart Indian said...

मार्मिक प्रसंग. बुरे वक्त की काट क्या हो?