Thursday, November 25, 2010

यादें बस यादें रह जाती है ...

तारीखें हमेशा दर्ज हो जाती है...जेहन में...
फ़िर उठती है सिहरन...... मन में.....
काँपती है रूह अब भी......तन में.....
फ़िर बितेगी रात बस.....चिंतन में......




 






4 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

sabhi geet badiya

Smart Indian said...

अर्चना जी,
समझ नहीं आता क्या कहा जाये। लेकिन यह सच है कि यादों का भी अपना सहारा होता है!

arvind said...

badhiya geet...aabhaar

प्रवीण पाण्डेय said...

सभी गहरे गीत।