Thursday, November 18, 2010

जाने कब??

एक पुरानी कविता (?) आज फ़िर से ----

यहाँ हर एक की अपनी कहानी होती है ,
कभी खुद तो कभी दूसरो की जबानी होती है।
हमे अपने बारे मे सब पता होता है ,
क्या अच्छा होता है?,क्या बुरा होता है।
अपने फ़ायदे की हर बात, हम मानते है,
और स्वार्थपूर्ती के लिये हर जगह की खाक छानते है।
जिससे हो हमे नुकसान ,ऐसी हर बात टालते है,
और जरा-सी बात पर ही ,दूसरो को मार डालते है।
कुछ लोग जब यहाँ अपनी लाइफ़-स्टोरी गढते है,
तभी कुछ लोग, औरों की लाइफ़-स्टॊरी पढते है।
यहाँ लोग अपने पापो का घडा दूसरो के सर फ़ोडते है,
और दूसरो की चादर खींचकर मुंह तक ओढते है।
जो कुछ हम करते है,या करने वाले होते है ,सsssब जानते है,
फ़िर भी अपने आप को क्यो??? नही पहचानते है ।
जाने कब??? वो दिन आयेंगे ,
जब हम अपने आप को बदल पायेंगे!!!!!!!!!!

7 comments:

Sunil Kumar said...

बस इंतजार ही है इसका उत्तर ....

प्रवीण पाण्डेय said...

इन विरोधाभासों के बीच बढ़ता जा रहा जीवन।

बाल भवन जबलपुर said...

उमदा सवाल है
कोई कभी नहीं बदलता
समय को छोड़ कर सब कुछ स्थिर
जो इन्सान बदल जाएगा तो
धरा को स्वर्ग का स्वरूप मिल जाएगा

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... कुछ प्रश्न जिनका उत्तर आसान नहीं ....

संजय कुमार चौरसिया said...

बस इंतजार है

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बहुत प्यारा सवाल है और बहुत आसान होते हुए भी बहुत मुश्किल... जवाब मिले तो हमें भी बताइएगा..हर किसी के मन की बात है!! बहुत सुंदर!!

राम त्यागी said...

पर शायद जीवन इन्हीं पगडंडियों का नाम है ....

आपने हम सबके मन की बात इस मौलिक रचना के माध्यम से कह दी है !!