Sunday, December 18, 2011

मौन का खाली घर देखा है ???

और जब सपने टूट जाते थे ,
और जरूरते रोती थी ,
तब सरकार सपनों की गिनती कर,
जरूरतों के हिसाब से कागज पर,
आंकडे भरती थी.......... मौन थी मै ओम जी की ये कविता पढकर........



 कई दिनों से लिखा नहीं क्यों ??आप भी मिस क़र रहें होंगे मेरी तरह...
 अब मौन न रहो...----ओम आर्य ...

 

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मौन ढूढ़ लेगा राहें अब।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मौन इतना भी मुखर होता है!!!

सदा said...

बेहतरीन ।