Wednesday, September 26, 2012

शायद ....गज़ल...

कभी जो राह तकते थे वो अब नश्तर से चुभते हैं
किताबों में रखे हैं फ़ूल वो अब खंजर से दिखते हैं...

हुई ये आँख भी गीली और उदासी का समन्दर है
अगर कोई जाम भी छलके तो आँसूओं से छलकते हैं...

कभी तुम लौट कर आओ इसी उम्मीद में अब भी
लौटती सांस से हरदम, बड़ी खुशियों से मिलते हैं...

न जाने कौन सा किस्सा, किताबों सा छपा दिल में
उसी की हर इबारत से, वो किस्मत को बदलते हैं...

-अर्चना 

Saturday, September 22, 2012

कोई चेहरा भूला सा ...

संजय अनेजा जी के ब्लॉग मो सम कौन कुटिल खल ......?से एक पोस्ट 

कोई चेहरा भूला सा
इस पोस्ट के बारें में कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा सिर्फ़ सुना और महसूस किया जा सकता है --

जो भी प्लेयर चले दोनों में से -









Friday, September 21, 2012

मनाओ जश्न कि...चूर होना है...






जीवन क्या है
पानी का बुलबुला
क्षण भंगुर...

आँखों की नमी
धुंधला देती सब
हँसना होगा...

लड़ना होगा
खुद को ही खुद से
खुद के लिए...

बढ़ना होगा
निड़रता से फ़िर
बेखौफ़ होके...

धीरज रखो
दुख में भी अपने
मुस्कान लिए...

औरों के लिए
भूल कर खुद को
मनाओ जश्न....

मनाओ जश्न
कि थकना है हमे
चूर हों हम...

-अर्चना

Tuesday, September 18, 2012

माँ तो बस माँ हैं ...

कुछ दिनों पूर्व माँ आई हुई थी मेरे पास.... मेरे सुबह स्कूल चले जाने के बाद दिन में वे घर पर रहती थी, समय बिताने के लिए घर की साफ़-सफ़ाई में लगी रहती थी ..मैं स्कूल से आकर कम्प्यूटर पर...... तो वे मेरे पास आकर बैठती  मेरे बनाए पॉडकास्ट सुनना पड़ता उन्हें ...एक दिन शिल्पा जी की पोस्ट रामायण पढ़कर सुनाई मैंने और उन्हें कहा अक्षर बड़े कर देती हूँ आप भी कर सकती हैं रिकार्ड ..और बस हमारी माँ भी हमारी माँ ही हैं कर दिया श्री गणेश शिल्पा मेहता जी के ब्लॉग रेत के महल से एक पॉडकास्ट तैयार....









आस्था,श्रद्धा और विश्वास...साफ़ झलकता है माँ की आवाज में ........रेत के महल से रामायण भाग -१





Sunday, September 16, 2012

ओ माय गॉड... केंगलौर

आज सुनिए अनूप शुक्ला जी के ब्लॉग "फ़ुरसतिया" से एक पोस्ट
अभी  फ़ेसबुकियाने गई तो पता चला "सुकुलवा जी" का आज जन्मदिन है.....बधाई व शुभकामनाएँ देने के साथ ही लगे हाथ तोहफ़ा भी जन्मदिन का ...

Share Music - Play Audio - Daftar me angreji  दफ़्...

पहला प्लेअर चल नहीं  रहा -

Thursday, September 13, 2012

बस तुम ही तुम ...


मेरे अपने 
बादलों की ओट में 
जा छुपे कहीं
सपने भी खो चुके 
ना जाने कब कहाँ...


तारों की लड़ी 
यूँ पलकों से झड़ी
रात की बेला 
मन तनहा मेरा
चाँद ही मेरा साथी...

बिखरे तारे
चंदा संग नभ में
तुम्हें भी देखा
पलकें होती बन्द
धुंधला जाता सब...






कैसे बीतेंगे 

अब ये दिन-रैन
जिया ना लागे
हर पल यादों में
बस तुम ही तुम...

Sunday, September 9, 2012

पलकें और आँसू

(चित्र एक ग्रुप- साहित्यिक मधुशाला की वॉल से लिया है)
वादे के बाद
मेरे जाने के बाद
रोई क्यों तुम?...

रोया ना करो
मोती गिर जाते हैं
चमकीले से...

बूँदों को मिली
पलकोंकी पालकी
मुझे क्या मिला?...

थाम लो मुझे
मेरे आँसू कहते
बरस बीते...

रूको तो साथी
तुम तो मत जाओ
साथ चलेंगे...

मोती की लड़ी
ठहर-ठहर के
आँखों से झड़ी...

किस विध से
मैं नीर नयन का
रोकूँ साजन?...

बिखरे सारे
मोती मेरे मन के
टूटी मनका...

तनहा शाम
फ़िर उदास मन
छलका जाम...

मोती क्यूँ झरे
यूँ पलकों के तले
तुम क्या जानो...

जंग अश्कों से
न जीती जाती कोई
हँस के देखो...
-अर्चना









Tuesday, September 4, 2012

यादों के दीप...प्रकाश करिया

सुनिए फ़ेसबुक पर मिले मित्र प्रकाश करिया जी की एक रचना...


यादों के दीप हमने जला कर बुझाये,बुझा कर जलाये,
तुझे भूल कर भी ऐ जानेमन हम भूल ना पाए,

वो कल की ही रातें थी, चाहत की बाते थी,
हर दिन वो तेरी मेरी, हसीं मुलाकातें थी,
कैसे वो प्यार तेरा तू ही बता हम भूल जाये,
यादो के दीप......

तरस दिल की हालत पे कुछ तो खाओ,
बहुत रो चुके है हम, हमे ना रुलाओ,
सितम ना करो अब, तेरे प्यार में गम बहुत है उठाए,
यादो के दीप.....

निशा मिट गए है, कदमो के मेरे,
निकल तो आये है, महफ़िल से तेरे,
खबर क्या तुझे के कदम कैसे थक कर हमने उठाए,
यादो के दीप.....

नहीं कोई उम्मीद हमको बहारो की,
होती नहीं दुनिया दिल के मारो की,
फिरते है मरे मरे खुद को हम दीवाना बनाए,
यादो के दीप....

माना नहीं है कोई ज़िन्दगी में गम,
मगर खुशियों से है महरूम क्यों हम,
तुझ को भुलाया है, यादो को तेरी कैसे भुलाए,
यादो के दीप....

अब चाहत नहीं रंगीन नजारो की,
फूलो की, खुशबु की,कोई बहारो की,
मज़बूरी कैसी है,अरमा है सरे दिल में दबाए,
यादो के दीप....
-प्रकाश करिया
एक नई जगह हिन्दी वाणी पर



Sunday, September 2, 2012

रायपुर- एक संस्मरण

 रायपुर यात्रा-३० सितंबर- ४ अक्टूबर २०११
समय बीतते जा रहा है पर रायपुर की यादें ताजा है .....अक्टूबर माह में सी.बी.एस.ई. का खो-खो टुर्नामेंट इस बार रायपुर में हुआ था। हमेशा की तरह मुझे ही जाना था टींम को लेकर .....
जब से ब्लॉग लिखने लगी हूँ ....रिश्तेदारी बढ़ गई है ...
मैने दो साल पहले मिसफ़िट पर संजय चौरसिया जी की एक कविता पढ़ी थी...यूं ही  ..जैसे मैं सबकी पढ़ती हूँ...उसके कुछ दिनों बाद उनका इन्दौर आना हुआ तो..तो अपने दोस्त की मदद से मेरे घर तक मिलने आये ..ये अंतरजालीय संपर्क के बाद किसी ब्लॉगर से मेरी पहली मुलाकात थी। मुझे और उन्हें दोनों को लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिल रहे है बातों-बातों में पता चला कि वे "दीपक मशाल" के जीजाजी हैं।और संयोग देखिए उस वर्ष मुझे स्कूल टीम को लेकर शिवपुरी जाना था ,तो मौका नहीं चूके संजय जी, फोन पर पूछा- आप कब फ़्री होंगी ? बस थोड़ी देर के लिए ...मना करना तो मुश्किल था थोड़ा वक्त निकाला......... तो आ गए फ़टाक से बाईक लेकर............. अपने घर लेकर गए..श्रीमती जी और बच्चों से मिलवाया ,बहुत अच्छा लगा ...लेकर तो गए थे, एक घंटे का कहकर और दो घंटे बाद वापस आ पाए ..:-)दो प्यारे प्यारे बच्चों में समय कब बीता पता ही नहीं लगा।
उसके बाद इस वर्ष मुलाकात हुई "गिरीश बिल्लोरे जी" एवं परिवार से.......बिटिया को होस्टल में छोड़ने पूरा परिवार आया था ....इन्दौर में रहने वाली उनकी मौसीजी तो  विश्वास नहीं कर पा रही थी कि--- इस कंप्यूटर से बात करके भी कोई परिवार इतना जुड़ सकता है आपस में- कि अपना -सा लगे..........
और अब बारी आई थी रायपुर जाने की --  इस रूट पर  ब्लॉगरीय रिश्तेदार रहते हैं, जान चुकी थी।
गिरीश बिल्लोरे जी को बताया कि रायपुर जाना है तो ...किस ट्रेन से जा रही हूँ ये भी बताना पड़ा.....बस तारीख और समय पता कर लिया खुद उन्होंने ....कहा- खाना लेकर हम आयेंगे....ट्रेन ५ मिनट रूकती है ...आप मेनू बता दें .....और साथ ही बोगी नम्बर भी .......
फ़िर क्या था ..सब्जी -पूड़ी का आर्डर दे दिया ...और साथ ही ये भी  बता दिया कि मैं अकेली नहीं हूँ, मेरे साथ २४ लोग और हैं... ठीक समय पर  गिरीश जी की ओर से खाना भिजवा दिया गया था, ट्रेन लेट थी तो थोड़ी परेशानी जरूर हुई होगी उन्हें ....पर कुछ किया नहीं जा सकता था ....बच्चों को गुलाबजामुन का गिफ़्ट भी मिला था साथ में ....गिरीश जी से मुलाकात तो नहीं हो पाई  बच्चों की, पर बच्चे ये जानकर खुश थे कि मैडम के फ़्रेंड की ओर से खाना आया है........

बाद में इन बचे पैसों से  बच्चों का जन्मदिन मना लिया खेल के मैदान में  :-) -----
सफ़र बढ़िया रहा ..जैसे ही रायपुर स्टेशन पर ट्रेन रूकी ..मोबाईल  की घंटी शुरू हो गई .. मैं सामान और बच्चों को इकठ्ठा कर रही थी ....घंटी बन्द होने का नाम नहीं ले रही थी आखिर फोन उठा ही लिया ...
आवाज आई --- जी पहुँच गये आप ???
कानों के साथ.. आँखे भी फ़टी रह गई !!! खोजेने लगी चारों ओर ऐसा लगा कोई प्लेटफ़ार्म पर दूर से देखकर ही फोन पर बात कर रहा है ....
जबाब दिया -- हाँ ..बस अभी उतरे ही हैं ....
जबाब मिला --- ललित बोल रहा हूँ.......
ओह !! समझी......ये ललित शर्मा जी थे .....समय के पाबन्द ....!!
संदेश दे रहे थे कि - कब मिलने आ सकते हैं वे, उस समय की सूचना दे  दिजीयेगा......ठीक है ,कह कर बात खतम की।
दूसरे दिन  ललित जी आये स्कूल में मिलने...(बहुत दूर से ) पहचानने में कोई दिक्कत तो थी ही नहीं ..उनकी बेटी की  उसी दिन राज्यस्तरीय निशानेबाजी प्रतियोगिता चल रही थी  ......बहुत खुश थे वे ..
अपने मोबाईल में सहेजे कुछ खास फोटो दिखाये (अब ये मोबाईल खो चुका है).....मुझे याद आ रहा है एक किसी डस्टबिन का भी फोटो था उसके शेप के बारे में ....
.खेल का मैदान तैयार किया जा रहा था...



आमतौर पर मैदान एक दिन पहले तैयार हो जाता है पर पता नही किस परेशानी के चलते यहाँ नजारा दूसरा था,सारे मैदान तैयार किये जाना बाकि थे, ललित जी भी शायद चौंके होंगे ये नजारा देखकर ..खिलाड़ियों व उनके कोच ,जो कि दूर-दूर से आए थे ,के धैर्य की तारीफ़ करनी होगी उन्हें .....


हम इन्तजार  कर रहे थे .................गर्मी बढ़ रही थी.....स्कूल के केंटिन से कोल्ड ड्रिंक लिया और स्कूल बस की छाया में खड़े हो कर ...घर परिवार की बहुत सी बातें हुई....बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि आप कल का समय दीजिये एक घंटा ...........राहुल सिंह जी ,पाबला जी,अवधिया जी,संजीव जी सब इकट्ठा हो रहे हैं, मैं आपको लेने आ जाउंगा ...
समय तय हुआ एक दिन बाद यानि३ तारीख को ...कोल्ड ड्रिंक खत्म होते ही वे विदा हुए
और हम तैयार मार्चपास्ट के लिए----
किसी तरह मैच शुरू हुए और निर्धारित समय पर खतम करने की मजबूरी के कारण देर रात को कृत्रिम रोशनी मे खेले  गए.... 
 
                                     

                                                                                     
और खिलाड़ियोंका उत्साह भी देखने योग्य अनुकरणीय...






और ये वो बच्चे है जिनकी मेहनत ने रंग दिखाया और सारा कार्यक्रम निर्धारित समय पर सम्पन्न हुआ बिना अवरोध के ...इन्होने आतिथ्य सत्कार में रात-दिन एक कर दिया सारे 11वीं और 12 वीं के छात्र थे और अब सब नयी मंजिल की तलाश में निकल पड़े हैं, नई ऊँचाईयों को छूने ....मेरा शुभाशीष और शुभकामनाएँ इन सबको ....मैंने इनके काम को सराहा था और ये फोटो लिया था तब वादा भी किया था कि मैं इनके लिए लिखूंगी,मैं तो भूल चुकी थी लेकिन इन्होंने मुझे खोज निकाला फ़ेसबुक पर और अब सब मेरे फ़्रेंड हैं....:-)

इस बीच तीन तारीख भी आ गई ,और निर्धारित समय पर ललित जी पहुँच गए ...
वे बहुत दूर से लेने आए थे .....एक कार्यक्रम से होकर ...बताया कार लेकर आने वाले थे मगर अब 20-25 किलोमीटर जाना पड़ता वापस तो सोचा कि बाईक से ही ले लेता हूँ....वैसे भी कल मिल चुका था तो अन्दाजा आ गया था कि परेशानी नहीं होगी....:-) पूरे गर्व के साथ बेटी का पदक दिखाया गोल्ड मेडल ...

छत्तीसगढ रायफ़ल एसोशिएशन के तत्वाधान में आयोजित राज्यस्तरीय रायफ़ल शुटिंग प्रतियोगिता 2011 में इवेंट 10 मीटर एयर रायफ़ल (जूनियर) में स्वर्ण पदक विजेता....श्रेयांशि शर्मा ....
बधाई हमारी भी बेटी को..फ़िर चल पड़े बाकी साथियों से मिलने ...
पूरे रास्ते रायपुर की खूबियाँ गिनाते रहे ललित जी ...कभी बाँए तो कभी दाएँ देखने को कहते हुए ...मुझे हँसी भी आ रही थी कि लाख नाम बता दें पर मुझे कहाँ याद रहने वाला है कि किस तरफ़ क्या देखा...ये कॉलेज ये फ़लाँ दफ़्तर ,ये फ़लाँ बिल्डिंग वगैरह.....और तो और चौराहों के भी नाम ....भला आप ही बताईये याद रहते क्या और एक जगह तो हद ही कर दी जब गाड़ी से उतार कर बोले इस  भवन का फोटो ले लीजिए याद रहेगी रायपुर की ....सफ़ेद सी बहुत बड़ी बिल्डिंग थी "व्हाईट हाऊस नगर निगम" मगर लाईट ठीक न होने से ठीक से आ नहीं पाई ...:-)आपको गूगल के सौंजन्य से ही दिखा पा रही हूँ ---
तो करीब ५ किलोमीटर का सफ़र तय करने के बाद पहुँचे राहुल सिंह जी के ऑफ़िस "महंत घासीदास संग्रहालय संस्कृति विभाग" में जहाँ पाबला जी और संजीव जी से मुलाकात हुई थोड़ी ही देर में राहुल जी भा आ गए काम निपटाकर ..यहाँ से राहुल सिंह जी के घर जाना था ,दस मिनट के रास्ते में जब बातचीत के बीच राहुल जी ने याद दिलाया कि उन्हें  एक पॉडकास्ट याद है जो होली के समय किया था ..अच्छा लगा सुनकर राजीव तनेजा जी की पोस्ट थी मिसफ़िट पर जो कहीं बचपन में ले गई थी मुझे ...
सब लोग घर पहुँचे जहाँ श्रीमती नम्रता जी ने जो आदर दिया भुलाए नहीं भूलेगा ...

















इसी बीच अन्य लोग भी पधार चुके थे - अवधिया जी ,अनुज (छत्तीसगढ़ के गायक /अभिनेता),अशोक बजाज जी, स्वराज्य करूण जी,पाबला जी,संजीव तिवारी जी,और ललित जी, राहुल सिंह जी,श्रीमती नम्रता  जी के साथ बहुत ही शालीनता के साथ विमोचन हुआ रामनामी सीडी का...और फ़िर चाय-नाश्ता..





 बाद में राहुल सिंह जी की फ़रमाईश पर एक गीत भी सुनाना पड़ा ..
वे तो युगल सुनना चाहते थे, पर मुझे पता हैं, मैं नहीं गा सकती थी ,तो फ़टाफ़ट अकेले ही सुना दिया बाद मे अनुज ने बढ़िया गीत सुनाए...लोकगीत की










.मिठास में सब खो गए ...
समय होने पर अनुज ने जिस आत्मीयता के साथ मुझे वापस स्कूल छोड़ा वो भी मुझे हमेशा याद रहेगा ।शुक्रिया अनुज...







ऐसी मुलाकातें भविष्य में भी होती रहेगीं और इतनी ही आत्मीयता से इसी आशा से विदा ली रायपुर से ....