Friday, May 10, 2013

दास्तान - ए - आशू दा ....

प्रकाश गोविन्द जी को तो आप सब जानते ही हैं ,परिचय देने की जरूरत नहीं है ...पहेलियों को हल करने की विशेष योग्यता रखते हैं .... गाते भी बहुत बढ़िया हैं.....
एक बार इनसे बात हो रही थी मुझे अचानक  बैंक के काम से जाना पड़ा , मैंने मेसेज लिखा-
बैंक होकर आती हूं ...
जबाब आया -
वाह! आनन्द आ गया !...किजीए जमा ,जोड़ते रहिए पैसा ...
वापस आने पर मैंने पढ़ा मेसेज फ़िर पूछा-
किसने कहा ,पैसे जमा करती हूं,जोड़ती हूं पैसा ?
जबाब लिखते हैं-
आपकी मस्तिष्क रेखाओं ने... मैंने साफ़ पढ़ा..... :-)

तो इसका  मतलब है ये अन्तर्जाल पर मस्तिष्क रेखाएं भी देख सकते हैं ..... :-)

खैर ! ये तो थी मजाक की बातें ---
बहुत कोमल दिल वाले इन्सान हैं ,फ़िल्मों में विदाई के दॄष्य देखकर छुपकर रोने लगते हैं ---
आज एक मार्मिक कहानी इनकी कलम से - इनके ब्लॉग आवाज से -

4 comments:

Ramakant Singh said...

आज भी ऐसे अनोखे जीव विचरण करते है हमारे इर्द गिर्द ये बात अलग है की हम उनकी कीमत जान नहीं पाते जब जानते हैं समय निकल जाता है .. आपने मेरे पिता श्री जीत की कहानी पढ़ दी अंतर इतना है की वो उम्र भर मशीनों में व्यस्त रहे आज उनके न रहने पर उनका महत्व समझ आता है
सुन्दर वाचन और भागीदार बनाने के लिए प्रणाम ** आपने आँखें भीगी कर दी

प्रवीण पाण्डेय said...

हम भी जाकर यह ब्लॉग पढ़ते हैं।

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छा लगा इस कहानी को सुनना। सुनाने के लिये शुक्रिया।

दीपक 'मशाल' said...


प्रकाश गोविन्द जी की यह कहानी पूर्व में पढ़ चुका हूँ, कहानी अच्छी बन पड़ी है आपने अपनी आवाज़ देकर और भी बेहतर बना दिया।