Sunday, July 6, 2014

गुलाब ....

फ़िर एक बार घर शिफ़्ट हो रहा है , जो सामान हाथ में आ रहा है उससे जुड़ी यादें उसमें उलझे धागे की तरह एक सिरे से फ़ंसकर उधड़ती है और हाथ वहीं रूक जाते हैं सब कुछ थोड़ी देर के लिए स्थिर ... एक झोंका ... और सब कुछ बिखरा -बिखरा ..... दूर तक .... 
ये उदासी की चादर भी अजीब होती है ...

शादी से पहले अपने हाथों से काढ़ा गुलाब शादी में "रूखवत" में रखा गया था क्यों की शादी महाराष्ट्रीयन संस्कृति अपना चुके गुजराती परिवार में तय हुई थी ...शुरूआत में ससुराल की बैठक की शोभा बढ़ाते रहा .....फिर जब मेरे पास पहुंचा तो कई सालों से अलग -अलग घरों में घूमते रहा ......
पहली फ्रेम के साथ छोड़ने पर ,साड़ियों के साथ तह में छुपा रहा ,कई बार टंगने के लिए दीवार मिली कई बार नहीं ........
अब भी न सजे हुए करीब 4-5 साल हो गए ......आज सामने आ गया वही पहली सी मुस्कराहट लिए ........
आज जरूरत भी महसूस हो रही थी इससे मिलने की ..
.

2 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

नयी जगह में पुराने दोस्त का मिलना एक शीतल बयार की तरह होता है!!

Chaman's blog said...

आदें बड़ी ज़ालिम होती हैं
एक बार उनमे उलझे तो
बस मकद जलमे से निकलना मुश्किल
मगर फिर भी निकलना पड़ता है