Thursday, November 19, 2015

हमारा पहला सेल्फ़ी .

बात है 1986 अक्तूबर की ....
वत्सल था 11 महीने का .... घूमने का बहुत शौक था तुम्हें ...वो भी परिवार के साथ .... पूरे 17 तीन का टूर प्लान किया था ,साउथ घूमने का ...बंगलौर,मैसूर,कन्याकुमारी,मद्रास,ऊटी,पक्षीतीर्थ,त्रिवेन्द्रम, ... बहुत से नाम तो अब याद भी नही आ रहे .... निकले थे आसनसोल से .... और अंत मे "जगन्नाथ पुरी होते हुए वापस आना था .....
पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घूमना ..... आहा ! कितना आनंद दायक था ....
हर शहर पहुँच कर वहाँ रूकने के लिए होटल में सस्ता कमरा तलाशने के लिए तुम बाहर होकर आते मुझे सामान के साथ प्रतीक्षालय मे बैठाकर ....... जब तक वापस आते मैं वत्सल को गोद में लेकर इधर-उधर बोर्ड पढ़ने की कोशिश करती .... समझ तो कुछ आता नहीं था .... फिर आकर कहते चलो ..मिल गया कमरा ...मैं वत्सल और छोटा बेग लेती ..तुम बड़े बेग उठाते ...तुम आगे मैं पीछे .....कमरे पर पहुँच कर सबसे पहला काम तुम्हारा होता छोटा बत्ती वाला स्टोव  खोल बाथरूम  में ले जाकर घासलेट(केरोसिन) डालना और जलाकर देना ....तब तक मैं वत्सल को खेलने में लगा छोटा स्टील का पतीला निकाल पानी तैयार रखती फिर गरम करने को स्टोव पर चढ़ा पहले वत्सल  के लिए गिलास के मिल्क पाऊडर में गुनगुना पानी मिला दूध तैयार करके बचे पानी में के  शक्कर -चायपत्ती  मिला देती और दो-कप में मिल्क पाउडर निकाल तैयार रखती .... अपनी चाय छान कर वही पतीला धोकर नहाने का पानी वत्सल के लिए गरम करती ...उसे नहलाकर आपको दे देती टॉवेल में लपेट कर ... आप उसका बदन पोंछ पाऊडर -क्रीम लगाकर कपड़े पहनाते तब तक मेरा नहाना निपट जाता ..साथ ही वत्सल के कपड़े भी ....धुल जाते .... फटाफट वही पतीला फिर पानी गरम करता और इस बार उसमें घर से तैयार मिक्स बनाकर लाई उपमा डालने के लिए ....
आपकी बारी नहाने की .... तब तक नाश्ता तैयार...वत्सल के लिए टिफ़िन रखती .... हम वहीं खा लेते ....
मैं बेग बन्द करने की तैयारी करती और आप स्टोव को वापस फोल्ड करने की ....
मजा तब आता जब स्टोव बन्द करते तो केरोसिन की गन्ध फ़ैलती ... हम परफ़्यूम खोलकर उसे उडाते  ..... और होटल का कर्मचारी पूछने आता ....

खैर ... रास्ते में कई साथी मिल गए थे .... खास कर तीन परिवार
एक केरल का नव विवाहित जोड़ा ..दूसरे बंगाल से ,जिनका कोई बच्चा शादी के कई दिन बाद भी नहीं था ...तीसरे उडीसा से, जो अपने डेढ़ साल के बच्चे को नानी के पास छोड़ आए थे .... वत्सल को पूरे समय संभालते रहते ..... हम कई शहर साथ घूमें .....लेकिन तरीका ये होता कि एक शहर से दूसरे शहर साथ एक ही बस से रात के सफ़र का टिकट लेते कोई एक ही जाकर ...फिर रूकते भी एक ही रूम लेकर ..सबका सामान उसमें रख देते बारी-बारी नहाकर तैयार होते ,नाश्ता साथ करते ...और अपनी -अपनी पसन्द के अनुसार घूमते दिन भर ...शाम को इकठ्ठे होने का समय और स्थान तय करके फिर एक जगह मिलते ...सामान उठाते और अगली जगह निकल पड़ते ...
ऊटी में सब अलग जगह रूके थे ...  .... सब तिरूपति में मिले थे शायद ....
ये ऊटी के किसी होटल की खिड़की में लिया फोटो है ...., पुराने केमरे से ..अपना पहला सेल्फ़ी .... १९८६ ,अक्टूबर माह में

4 comments:

कविता रावत said...

तस्वीर देख जाने कितनी ही यादों की तहें खुल जाती हैं तह-दर-तह ...
बहुत सुन्दर यादगार प्रस्तुति ....

Rajiv said...

It's nice to go down the memory lane and see the memories walking past your eyes. Didi, nice and memorable description.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह! यह तो आनंद की यादें हैं! अच्छा किया जो साझा किया।

Onkar said...

बहुत बढ़िया