Friday, August 4, 2017

फेसबुक पर धतर-मतर कुछ भी पढ़-पढ़ कर भेजे का बना भुरता

कुछ भी लिख देने को कैसे मन हो जाता है,किसी का भी?
क्या ये वे लोग लिख देते हैं?-जिनके माता-पिता या दादा-दादी ने बचपन में पीछे से हाथ न धरा गोद में बिठाकर, सिर पर हाथ न फेरा,या बहन ने राखी न बाँधी, या भाई ने अपना हिस्सा नहीं बाँटा,या फिर शादी के बाद पत्नी ने ही साथ न निभाया या कि अपना पौरुष कहीं खो आये,या हो सकता है पौरुष खुद ही साथ छोड़ गया उनका ....
या बच्चों ने बाहर का रास्ता दिखा दिया उम्र के ढलान पर, लुढ़का दिया बे-पेंदे के लोटे की तरह... या हो सकता है अपनी पहचान की तलाश में काँटों भरी गलत राह चुन ली...और दोस्त भी न बना कोई ...

खैर! वे जानें ,उन्हें बीमारी कौनसी है? 😊
लेकिन इलाज तो ये पता है कि -जब तक ऐसे लोग,जो कुछ भी लिख सकते हैं,स्त्री,महिला,नारी या मादा के लिए आदर और सम्मान के एक -दो शब्द न लिखेंगे,जिंदगी के मायने उनको नहीं आएंगे,जीना वे कभी सीख नहीं पाएंगे यहाँ तक कि मौत भी उनकी जल्दी नहीं आएगी ,यहीं पड़े वमन करते,सड़ते रहेंगे .....

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ये था काल्पनिक अध्याय 19 का भावानुवाद जो कृष्ण ने अपनी माताओं,सखियों और प्रेम की दिवानियों को स्वर्ग में चुपके से समझाया ,उनके प्रश्नों की जिज्ञासा में .....अपन भी वहीं थे तब 😊
और अब -
अपनी डॉक्टरी तो इत्ता जानती है,बस!...😊 
और ये डॉक्टरी ऐसी वैसी तैयारी से नहीं मिली,पूरी थीसिस समझी यहीं फेसबुक पर झख मारकर .....☺

3 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

यही हाल है बिल्कुल.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : किशोर कुमार और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

HindIndia said...

बहुत ही बेहतरीन article लिखा है आपने। Share करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)